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Tuesday, March 28, 2017

मानस बिष्नु, માનસ વિષ્નુ

રામ કથા

मानस विष्नु - માનસ વિષ્નુ

ભોપાલ - (મધ્ય પ્રદેશ)

મંગળવાર, તારીખ ૨૮/૦૩/૨૦૧૭ થી બુધવાર, તારીખ ૦૫/૦૪/૨૦૧૭

મુખ્ય પંક્તિ

बिष्नु जो सुर हित नरतनु धारी। 

सोउ सर्बग्य जथा त्रिपुरारी॥

.....................................................................1-50/1


देवताओं के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करने वाले जो विष्णु भगवान्‌ हैं, वे भी शिवजी की ही भाँति सर्वज्ञ हैं। 

भुज बल बिस्व जितब तुम्ह जहिआ। 

धरिहहिं बिष्नु मनुज तनु तहिआ॥

......................................................................1-138/6

तुम अपनी भुजाओं के बल से जब सारे विश्व को जीत लोगे, तब भगवान विष्णु मनुष्य का शरीर धारण करेंगे॥



મંગળવાર, ૨૮/૦૩/૨૦૧૭

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।


लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्व न्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥


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हनुमान चालीसा और भजन के बाद बापू ने चौपाई गाकर की रामकथा की शुरुआत

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भोपाल। रामचरित मानस के प्रखर प्रवक्ता संतश्री मोरारी बापू ने हनुमान चालीसा और भजन से रामकथा की शुरुआत की। मंगलवार को लाल परेड ग्राउंड स्थित मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में उन्हें सुनने के लिए सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंचे। वे 12 साल बाद राजा भोज के शहर आए। भास्कर परिवार की पहल पर नवरात्र में नौ दिन उनकी कथा का प्रसंग है।

सीएम ने किया दीप प्रज्वलित

-दीप प्रज्वलित कर सीएम शिवराज सिंह चौहान और दैनिक भास्कर समूह के चेयरमैन रमेशचंद्र अग्रवाल ने रामकथा महोत्सव का शुभारंभ किया।
-मोरारी बापू जब कथा के दौरान भजन और चौपाई गा रहे थे तो उनके साथ ही साथ वहां मौजूद लोग भी झूम रहे थे। इस दौरान पूरा माहौल 'राम मय' हो गया।
-विख्यात आध्यात्मिक संत व मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू ने एक बार फिर 12 साल बाद भोजनगरी भोपाल के लोगों को अपनी मधुर वाणी से अमृतमयी रामकथा का रसपान कराया। उन्होंने नए सिरे से नए संदर्भों में नए प्रसंगों के साथ न केवल लोगों को जीवन जीने की कला के नए सूत्र बताएं।

-दो टूक शब्दों में उन्होंने पहला सूत्र ये दिया कि सबसे पहले हम लोगों की भलाई-बुराई करना छोड़े। ऐसा करने में ही हमारी आंतरिक ऊर्जा नष्ट हो रही है।
-दूसरी सीख ये थी कि भगवान के भगवान के भी हाथ दो हैं, पर जो चार दिखते हैं, उसके पीछे संदेश निहित्त है, कि हम कमाएं दो हाथों से और परमार्थ करें चार हाथों से।
भास्कर परिवार को दिया साधुवाद
उन्होंने भास्कर परिवार को साधुवाद दिया कि उसकी पहल पर चैत्र नवरात्र के पावन दिनों में लोगों को रामकथा श्रवण करने का सुअवसर मिला है। नवरात्र के सभी दिन पावन होते हैं। सृष्टि और इसके बाद विक्रम नवसंवत्सर का शुभारंभ भी इसी दिन हुआ था। संतश्री बापू ने अपनी कथा का केंद्र बिंदू भी विष्णु मानस को बनाया। इसकी वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि ब्रह्मा के अवतार नहीं हुए, शिव अजन्मा है, अवतार हैं। उनमें राम व कृष्ण भी शामिल हैं।
कोने-कोने में दिखाई दिए बापू
एक लाख वर्गफीट के भव्य व विशाल पंडाल में बापू हर कोने से दिखाई दिए। पंडाल में बुजुर्गों के लिए कुर्सियों की विशेष व्यवस्था की गई है। 


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  • મારી કથા ધર્મશાળા નહીં પ્રયોગશાળા છે : મોરારિ બાપૂ 

ભોપાલમાં શરૂ થઇ નવ દિવસીય રામકથા

સંતશ્રીમોરારિ બાપુની નવ દિવસીય રામકથા મંગળવારે અહીં મોતીલાલ નેહરુ સ્ટેડિયમમાં શરૂ થઇ. પ્રસંગે મુખ્યમંત્રી શિવરાજસિંહ ચૌહાણ અને ભાસ્કર જૂથના ચેરમેન રમેશચંદ્ર અગ્રવાલે વ્યાસપીઠની પૂજા કરી હતી. ભાસ્કર પરિવારની પહેલ પર બાપુએ કથાના પહેલા દિવસે માનસના આધારે વિષ્ણુની વ્યાખ્યા કરી હતી. જેમાં તેમણે જટિલ જીવનના સરળ સૂત્ર પ્રસ્તુત કર્યા હતા.
તુલસીને નારી નિંદક માનનારા ધ્યાન આપે કે તુલસીનું શાસ્ત્ર માતૃવંદનાથી શરૂ થાય છે. સરસ્વતી વંદના પહેલાં છે ગણેશ વંદના, પછી શંકર પહેલાં ભવાનીની સ્તુતિ છે. રામ પહેલાં સીતાનાં ગુણગાન છે. હું કથા માટે વિષ્ણુને લઇશ, જેમના 24 અવતાર મનાય છે. બ્રહ્મા યુગોમાં ક્યારેક આવ્યા છે. વિષ્ણુ એટલે કે વ્યાપક.કોઇ દીવાલ નથી. સંકુચિતતા નહીં. મારી કથા ધર્મશાળા નહીં પ્રયોગશાળા છે. પ્રયોગ છે, સૂત્રોચ્ચાર નહીં સાધના શીબીર છે.
પહેલો દિવસ, પાંચ સૂત્ર
1. જીવનમાં એક ગુરુ જોઈએ જે તમારો દીવો પ્રજ્વલિત કરીને અલગ થઈ જાય. એક માર્ગદર્શક જે મુક્તિમાં સહાયક હોય.
2. કમાણી કરવાની મનાઈ નથી પરંતુ ચાર હાથે દાન પણ કરવું જોઈએ.
3. કોઈના માત્ર દેખાવથી તેમના વિશે અનુમાન કરશો. આવું કરવાથી આપણે માનસિક સ્તરે સ્વસ્થ થઈ શકીએ છીએ.
4. જે મૃત્યુને સ્વીકારી લે, ઝેર સ્વીકારી લે તે પૂજ્ય છે. આથી શંકર અને જીસસ પૂજ્ય છે.
5. હિન્દુ પરંપરામાં ધર્મની વ્યાખ્યામાં આકાશની તુલના કરી છે. જેની દૃષ્ટિ વિશાળ છે જે સૌને સમાવે છે તે સાચો ધર્મ છે.

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  • વિષ્ણુ ભગવાન એ પ્રકાશ પુંજ છેઃ પૂ.મોરારીબાપુ

ભોપાલમાં ''માનસ બિષ્નુ'' શ્રીરામકથાનો બીજો દિવસ

રાજકોટ તા.૨૯: પૂ.મોરારીબાપુના વ્યાસાસને મધ્યપ્રદેશના ભોપાલમા ''માનસ બિષ્નુ'' શ્રી રામકથાનો કાલે મંગળવાર સાંજથી પ્રારંભ થયો છે.
   પૂ.મોરારીબાપુએ આજે શ્રીરામકથાના બીજા દિવસે કહ્યુ કે, 'વિષ્ણુ ભગવાનએ પ્રકાશ પૂંજ છે' વિષ્ણુ એટલે આકાશ એવો અર્થ થાય છે.
   પૂ.મોરારીબાપુએ કથાશ્રવણના દિવસને માટે પ્રત્યેક દિવસના કથા શ્રવણનો મહિમા સમજાવતા કહ્યુ હતું કે કોઇપણ કથા વિશેષ રામકથામાં પ્રથમ દિવસે કૂતૂહલવશ કથા સાંભળવી, બીજા દિવસે કથા વિષયનો સ્વાધ્યાય જાણીને કથા શ્રવણ કરો. ત્રીજો દિવસે ફ્રેશ-તાજા થઇને કથામાં બેસો, ચોથે દિવસે પ્રસન્નતાપૂર્વક કથા સાંભળો, પાંચમો દિવસ ભોજન આછુ કરો,  છઠ્ઠો દિવસ હરિનામરૂપી આહાર કરો એટલે નબળાઇ ન આવે, સાતમા દિવસે ઇંડો શ્વાસ અને અંતરંગ વિશ્વાસ સાથે કથા સાંભળો, આઠમા દિવસે ચિત્તની એકાગ્રતાનો ભાવ કેળવો અને કથાના નવમા દિવસે કેવળ શરણાગતિનો ભાવ-સમર્પણ સાથે કથાશ્રવણ કરો- આ તલગાજરડીય દૃષ્ટિથી કથાના આમ નવ દિવસનો કથા સાંભળવાનો ક્રમ-ભાવ મારિદીષ્ટિએ આટલા વર્ષોના અનુભવથી મને આમ કથાશ્રવણના નવે-નવ દિવસનો ક્રમ અનુભવાયો છે એ રીતે કથા સાંભળવાની આદત તમે પણ કેળવી શકો છો.

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  • संतश्री मोरारी बापू ने कहा- हरेक को श्रम करना ही चाहिए, यही विष्णु का पहला धर्म

Bhaskar News | Mar 30, 2017

भोपाल. भास्कर परिवार की पहल पर आयोजित श्रीराम कथा महोत्सव के दूसरे दिन संतश्री मोरारी बापू ने कहा कि सबसे बड़ा रोग-क्या कहेंगे लोग! शायर मजबूर की पंक्तियां हैं यह। इसलिए लोगों के कहे पर ध्यान न दें। उन्हें कोई और काम नहीं है। यही करने दो। आप कुछ भी करें, आलोचक तो कुछ न कुछ कहेंगे ही। कथा का दूसरा दिन...
गुरू कभी बेवफा नहीं हो सकता क्योंकि वह छल नहीं करता: मोरारी बापूरामकथा के बीच में बापू ने सुनाए भजन और चौपाई, कहा- इसे मैं प्रेम यज्ञ कहता हूंश्रीराम कथा के शुभारंभ पर बोले मोरारी बापू- मेरे लिए प्रत्येक कथा एक प्रयोग है
1. स्वास्थ्य ठीक न हो तो सबसे पहले इसी का ध्यान रखें। तुलसी को छूने से ही मान लें कि स्नान हो गए।
2. लोग हिमालय घूमने जाते हैं अौर तस्वीरें खींचने में अटक जाते हैं, जबकि वहां हिमालय को आत्मसात करना है।
3. अपने नौकर-चाकरों को प्राणों की तरह प्रिय मानो। वे तुम्हारे सहचर हैं। जहां सेवकों को प्यार नहीं, वहां शंकर, विष्णु किसी का वास नहीं।
4. विष्णु का दसवां अवतार सदगुरू होगा। उससे अधिक निष्कलंक और निश्छल कौन हो सकता है।
5. जहां हल्ला होता है, वहां अल्लाह नहीं होता और जहां अल्लाह होगा, वहां हल्ला-गुल्ला नहीं।
दूसरों का कल्याण ही शिवपूजा है
नर रूप में नारायण के दर्शन के लिए हरेक काे श्रम करना ही चाहिए। आलस्य और प्रमाद मृत्यु है। सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में विष्णु का यही पहला धर्म है-श्रम धर्मा। ब्रह्मा का काम पल भर का है-सृष्टि का सृजन। मगर विष्णु पालनकर्ता हैं।
मां बच्चे को जन्म देती है मगर पिता पालन करता है। पालन करना बहुत श्रमसाध्य है। पूरा जीवन लगता है। विष्णु प्रेम धर्मा हैं। वे तरोताजा हैं। प्रेम कभी पुराना नहीं होता। वे ज्ञान धर्मा हैं-कमल की तरह असंग हैं। ध्यान धर्मा हैं-पालन करने वाले को सबका ध्यान रखना जरूरी है। मामूली चूक बड़ा नुकसान कर सकती है। वे समाधि धर्मा हैं-योगनिद्रा में रहते हैं।
शंकराचार्य ने कहा कि कर्त्तव्य निभाते हुए निद्रा आ जाए तो वह भी समाधि है। निद्रा ही ध्यान है। ऐसी उदार विचारधारा दुनिया में दूसरी नहीं। घंटों तक पूजा-पाठ प्रासंगिक नहीं है। अपने विवेक में जीना ही गणेश पूजा है। अंधश्रद्धा नहीं होनी चाहिए, अश्रद्धा भी नहीं, मौलिक श्रद्धा में जीना ही दुर्गा पूजा है।
दूसरों के कल्याण के बारे में निरंतर सोचना, क्षमता हो तो करना ही शिव पूजा है। सूर्य के लिए जल चढ़ाना अच्छी बात है मगर प्रकाश और उजाले में जीने का संकल्प ही सूर्य पूजा है। अपना दृष्टिकोण, विचारधारा को विशाल रखना विष्णु पूजा है।
कुछ न बोले पर तिरंगा जानता सब है...
कथा स्थल पर बुधवार शाम अभा कवि सम्मेलन हुआ। देश भक्ति से ओतप्रोत कविताएं जगदीश सोलंकी ने सुनाई- जुबां से कुछ न बोले पर तिरंगा जानता सब है। मुझे सम्मान देने को सजाया तीन रंगों में, मगर अपमान भी तुमने खूब किया दंगों में ..।
कवि संपत सरल- उम्र-ए-दराज मांग कर लाए थे चार दिन, दो टेलीविजन ने लील लिए दो इंटरनेट ने। कवि प्रवीण शुक्ल-बाहर से दुनिया को जो दिखता है, सुंदर ताजमहल, उसके दिल की बस्ती में एक उज़ड़ा कब्रिस्तान भी है।
कवियत्री अंजुम रहबर ने अपनी छुक,छुक, छुक, छुक रेल चली है, रचना के माध्यम से जीवन की हकीकत बयां की। कवियत्री अनु सपन ने पढ़ा कि मेरी हर सांस में एक उपन्यास है, कोई कतरन नहीं मैं अखबार की। मैं धरा हूं, धर्म है सहनशीलता, मैं कोई वस्तु नहीं बाजार की। इसके अलावा कई अन्य रचनाएं भी मंच से पढ़ी गईं,जिनका लोगों ने भरपूर आनंद लिया। श्रोताओं में मोरारी बापू भी मौजूद थे।


  • श्रीराम कथा के शुभारंभ पर बोले मोरारी बापू- मेरे लिए प्रत्येक कथा एक प्रयोग है

Bhaskar News | Mar 29, 2017

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भोपाल. भास्कर परिवार की पहल पर चैत्र नवरात्र में संतश्री मोरारी बापू की नौ दिवसीय रामकथा का शुभारंभ मंगलवार की शाम को हुआ। लाल परेड ग्राउंड स्थित मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में पहले दिन बापू ने कहा- ‘मेरे लिए प्रत्येक कथा एक प्रयोग है। मैं इसे प्रेम यज्ञ कहता हूं। मैं मानस के माध्यम से एक प्रयोग कर रहा हूं। जो परिवार इसके निमित्त बनते हैं मानस में उन्हें उपकारी कहा गया है।’ पहले दिन मानस के आधार पर विष्णु की मंत्रमुग्ध कर देने वाली व्याख्या की, जिसमें उन्होंने जटिल जीवन के सरल सूत्र प्रस्तुत किए। पहला दिन पांच सूत्र...
1. जीवन में एक गुरु तो चाहिए, जो आपका दीप प्रज्ज्वलित करके अलग हो जाए। आत्मज्योति के लिए एक मार्गदर्शक, जो मुक्ति में सहायक हो।
रामकथा के बीच में बापू ने सुनाए भजन और चौपाई, कहा- इसे मैं प्रेम यज्ञ कहता हूंCM को बापू ने दी नसीहत, बोले- साधु-संतों के बीच घोषणाएं की हैं तो भूलना मत
2. धन कमाने की मनाही नहीं है। दोनों हाथों से कमाओ। मगर उसे चार हाथ से बांटो भी। विष्णु के चार हाथ इसी संदेश के प्रतीक हैं।
3. किसी को देखने मात्र से कोई नतीजा न निकालो कि यह काला है, गोरा है, भला है, बुरा है। वह वैसा ही है, जैसी उसकी श्रद्धा।
4. लंबी जिंदगी जीकर भी हम पूज्य नहीं हो पाते। मरने के तुरंत बाद बन जाते हैं। जो मृत्यु को, जहर को स्वीकार ले वही पूज्य। इसीलिए शंकर और जीसस पूज्य हैं।
5. हिंदू परंपरा में धर्म की व्याख्या में आकाश से तुलना की गई है। जिसकी दृष्टि संकीर्ण न हो, विशाल हो। जो सबको समाहित करे, वही सच्चा धर्म।
मातृवंदना से आरंभ होता है तुलसी का शास्त्र
तुलसी को नारी-निंदक मानने वाले ध्यान दें कि तुलसी का शास्त्र मातृवंदना से आरंभ होता है। सरस्वती की वंदना पहले है, गणेश की बाद में। शंकर से पहले भवानी की स्तुति है। राम के पहले सीता का गुणगान है। मैं इस कथा के लिए विष्णु काे लूंंगा, जिनके 24 अवतार माने गए। ब्रह्मा युगों में कभी-कभी किसी रूप में आए। शिव की अवतार परंपरा नहीं है। विष्णु माने व्यापक। कोई दीवार नहीं। कोई संकीर्णता नहीं।
विष्णु की प्रसिद्ध प्रार्थना में इन लक्षणों की चर्चा है- शांताकारम्, भुजगशयनम, पद्मनाभम्, सुरेशम्, विश्वाधारम्, गगनसदृश्यम्, मेघवर्णम्, शुभांगम्...। जगत में जिसमें ये 10 लक्षण दिखें, वह कोई भी हो, किसी भी धर्म और क्षेत्र का हो, उसे विष्णु के भाव से ही स्वीकार करना चाहिए। जो सर्प की शय्या पर भी शांत हो, जो हर पल को प्रसन्नता से व्यतीत करे, जो जीवंत हो, जो दिव्यता का शिरोमणि हो, जो आकाश की तरह व्यापक हो, जो मेघ के वर्ण का हो, जो लक्ष्मी का दास नहीं स्वामी हो...ऐसे विष्णु हमारे भय का निर्मूलन कर देते हैं। वे समस्त लोक के नाथ हैं। 14 ब्रह्मांडों के अधिपति हैं। जो शांत हो। उग्र और व्यग्र न हो।
इस जगत की अशांति में अगर कोई शांत बना रहे तो समझो विष्णु का एक अंश उसने जाग्रत कर लिया। गांधी ने कहा कि जो रामायण, महाभारत को नहीं जानता, उसे हिंदुस्तानी कहने का अधिकार नहीं। मेरी कथा धर्मशाला नहीं, प्रयोगशाला है। यह प्रयोग है, नारेबाजी नहीं। यह साधना शिविर है। यहां दायरों में बंधे किसी मजहब की नहीं, आकाश की चर्चा है, जिसमें सब समा जाते हैं।


  • रामकथा के बीच में बापू ने सुनाए भजन और चौपाई, कहा- इसे मैं प्रेम यज्ञ कहता हूं



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भोपाल। भास्कर परिवार की पहल पर चैत्र नवरात्र में संतश्री मोरारी बापू की नौ दिवसीय रामकथा का शुभारंभ मंगलवार की शाम को हुआ। लाल परेड ग्राउंड स्थित मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में पहले दिन बापू ने कहा- ‘मेरे लिए प्रत्येक कथा एक प्रयोग है। मैं इसे प्रेम यज्ञ कहता हूं। मैं मानस के माध्यम से एक प्रयोग कर रहा हूं। जो परिवार इसके निमित्त बनते हैं मानस में उन्हें उपकारी कहा गया है।’ पहले दिन मानस के आधार पर विष्णु की मंत्रमुग्ध कर देने वाली व्याख्या की, जिसमें उन्होंने जटिल जीवन के सरल सूत्र प्रस्तुत किए। पहला दिन पांच सूत्र...

1. जीवन में एक गुरु तो चाहिए, जो आपका दीप प्रज्ज्वलित करके अलग हो जाए। आत्मज्योति के लिए एक मार्गदर्शक, जो मुक्ति में सहायक हो।
2. धन कमाने की मनाही नहीं है। दोनों हाथों से कमाओ। मगर उसे चार हाथ से बांटो भी। विष्णु के चार हाथ इसी संदेश के प्रतीक हैं।
3. किसी को देखने मात्र से कोई नतीजा न निकालो कि यह काला है, गोरा है, भला है, बुरा है। वह वैसा ही है, जैसी उसकी श्रद्धा।
4. लंबी जिंदगी जीकर भी हम पूज्य नहीं हो पाते। मरने के तुरंत बाद बन जाते हैं। जो मृत्यु को, जहर को स्वीकार ले वही पूज्य। इसीलिए शंकर और जीसस पूज्य हैं।
5. हिंदू परंपरा में धर्म की व्याख्या में आकाश से तुलना की गई है। जिसकी दृष्टि संकीर्ण न हो, विशाल हो। जो सबको समाहित करे, वही सच्चा धर्म।

मातृवंदना से आरंभ होता है तुलसी का शास्त्र
तुलसी को नारी-निंदक मानने वाले ध्यान दें कि तुलसी का शास्त्र मातृवंदना से आरंभ होता है। सरस्वती की वंदना पहले है, गणेश की बाद में। शंकर से पहले भवानी की स्तुति है। राम के पहले सीता का गुणगान है। मैं इस कथा के लिए विष्णु काे लूंंगा, जिनके 24 अवतार माने गए। ब्रह्मा युगों में कभी-कभी किसी रूप में आए। शिव की अवतार परंपरा नहीं है। विष्णु माने व्यापक। कोई दीवार नहीं। कोई संकीर्णता नहीं।

विष्णु की प्रसिद्ध प्रार्थना में इन लक्षणों की चर्चा है-
शांताकारम्, भुजगशयनम, पद्मनाभम्, सुरेशम्, विश्वाधारम्, गगनसदृश्यम्, मेघवर्णम्, शुभांगम्...। जगत में जिसमें ये 10 लक्षण दिखें, वह कोई भी हो, किसी भी धर्म और क्षेत्र का हो, उसे विष्णु के भाव से ही स्वीकार करना चाहिए। जो सर्प की शय्या पर भी शांत हो, जो हर पल को प्रसन्नता से व्यतीत करे, जो जीवंत हो, जो दिव्यता का शिरोमणि हो, जो आकाश की तरह व्यापक हो, जो मेघ के वर्ण का हो, जो लक्ष्मी का दास नहीं स्वामी हो...ऐसे विष्णु हमारे भय का निर्मूलन कर देते हैं। वे समस्त लोक के नाथ हैं। 14 ब्रह्मांडों के अधिपति हैं। जो शांत हो। उग्र और व्यग्र न हो।

इस जगत की अशांति में अगर कोई शांत बना रहे तो समझो विष्णु का एक अंश उसने जाग्रत कर लिया। गांधी ने कहा कि जो रामायण, महाभारत को नहीं जानता, उसे हिंदुस्तानी कहने का अधिकार नहीं। मेरी कथा धर्मशाला नहीं, प्रयोगशाला है। यह प्रयोग है, नारेबाजी नहीं। यह साधना शिविर है। यहां दायरों में बंधे किसी मजहब की नहीं, आकाश की चर्चा है, जिसमें सब समा जाते हैं।



  • गुरू कभी बेवफा नहीं हो सकता क्योंकि वह छल नहीं करता: मोरारी बापू

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गुरू और भगवान का नाम ही तारनहार
उन्होंने भोज नगरी में अपनी व्यास पीठ से भगवान के अवतारों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु के अब तक नौ अवतार हुए हैं। उनकी मान्यता है कि विष्णु का दसवां अवतार सदगुरू के रूप में ही है। अब तक कई गुरू आ चुके हैं, आगे भी आते रहेंगे। पिछले हर अवतार में कोई न कोई कमी थी, पर सदगुरू में हर अवतार का समावेश है। संत बापू ने कहा कि कलिकाल में गुरू और भगवान का नाम ही तारनहार हैं।

खुश रहने के बताए सरल उपाय
भास्कर परिवार द्वारा आयोजित राम कथा का श्रवण करने दूसरे दिन भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। कथा का रसास्वादन करने वालों में महिलाओं व युवाओं की भी खासी संख्या थी। संतश्री बापू ने राम कथा के माध्यम से खुश रहते हुए जीवन को सार्थक बनाने के कई सरल उपाय बताए। उन्होंने कहा कि कल्कि अवतार पर वे कुछ नहीं कहेंगे, पर इतनी उनकी मान्यता और विश्वास है कि दसवां अवतार सद गुरू के रूप में हुआ यह माना जाना चाहिए। जगत को सत्य, प्रेम व करूणा का मार्ग दिखाने गुरू सामने आते रहे हैं, अभी हैं भी और आगे भी आते रहेंगे।
गुरु कभी बेवफा नहीं हो सकता
संत बापू ने कहा कि भगवान के पिछले मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण आदि अवतार हुए। इनमें कोई न कोई कमी अवश्य थी, लेकिन सदगुरू अवतार ही ऐसा है, जिसमें कोई कमी नहीं। इसमें भगवान के सभी अवतारों का समावेश है। उन्होंने कहा कि गुरू कभी बेवफा नहीं हो सकता। वह छल नहीं करता। गुरू पथ प्रदर्शक होकर हमारी जीवन की राहों को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में हम रामचरित मानस को सदगुरू मान सकते हैं। सिख धर्म के लोगों ने अपने गुरुओं की वाणी को समाहित करने वाले ग्रंथ को गुरू ग्रंथ माना है। गुरू गगन से भी विशाल होता है।
पुरुषार्थ करें...
उन्होंने विष्णु को श्रमधर्मा बताते हुए कहा कि वे जगत पिता है। जगत के पालनहार के रूप में उन्हें अधिक श्रम करना होता है। श्रम अर्थात अपने कर्तव्य का अच्छी तरह निर्वहन करना धर्म पालन है। श्रम को जो अपना स्वभाव बना लेते है, वे नर से नारायण बनने की ओर बढ़ने लगते हैं। संत कबीर ने भी कहा है कि कुछ उद्यम कीजे। अर्थ साफ है कि पुरुषार्थ करें।
स्वयं को ऐसे भी कर सकते हैं पवित्र
उन्होंने श्रृद्धालुओं की शंका व जिज्ञासाओं का समाधान भी किया। उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि अगर कोई अस्वस्थता या किसी अन्य विवशता की वजह से स्नान नहीं कर सके, तो वह तुलसी की मिट्टी को अपने शीश से स्पर्श करा दे, तो वह स्वयं को पवित्र मान कर पूजा-पाठ या नाम जाप कर सकता है। उन्होंने कहा कि मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जो बात उनसे कहीं, वह उन्हें अच्छी लगी। वे पांच साल से छोटी कन्याओं के पांव जल से धोकर उस जल का स्वयं पर छिड़काव कर स्वयं को पवित्र कर लेते हैं।
बताई तीन युगों की परंपरा...
कथा के दौरान मोरारी बापू ने सतयुग, द्वापर और कलयुग की परंपराओं का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि, सतयुग में ध्यान और द्वापर में पूजा-अर्चना का विशेष महत्व होता था। इसी तरह कलयुग में भगवान के नामों का विशेष महत्व है। एक चौपाई के माध्यम से बापू ने बताया कि कलयुग में भगवान का नाम लेने भर से जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।


  • रामकथा में बोले बापू, रामनवमीं पर एक-एक पौधा लगाएं, शराब नहीं, प्रभु नाम का रस पीयें

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भोपाल। लाल परेड मैदान स्थित मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में भास्कर परिवार की पहल पर आयोजित राम कथा के तीसरे दिन गुरुवार को संत मुरारी बापू ने उपस्थित जनमानस को पर्यावरण संरक्षण और नशे के खिलाफ उठ खड़े होने का संकल्प दिलाया। इस मौके पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी मौजूद थे। बापू ने कहा कि, वे रामनवमीं पर खुद 11 पौधे रोपेंगे। जानें और रामकथा में और क्या बोले संत मुरारी बापू..
श्रद्धालुओं को दो संकल्प दिलाए

संत मुरारी बापू ने जनमानस को दो संकल्प दिलाए। पहला यह है कि वे अपने शहर के पर्यावरण की सुरक्षा व संरक्षण के लिए आगामी 5 अप्रैल को राम नवमीं पर एक-एक पौधा अवश्य लगाएं। कथा में उपस्थित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से उन्होंने कहा कि इस दिन वे जहां कहेंगे, 11 पौधे वे खुद अपने हाथ से रोपेंगे। बापू ने कहा कि वैसे तो भोपाल हरा-भरा और ताल-तलैयों का शहर है, जिसकी सुंदरता कायम रहे, इसके प्रयास होते रहना चाहिए।
- उनका दूसरा संकल्प उन लोगों के लिए था, जो शराब का सेवन करते हैं। उन्होंने कहा कि इसकी बजाए प्रभु नाम का रस पीयो। इसकी खुमारी में जो आनंद है, वह दूसरी वस्तु में नहीं।
-बापू ने स्पष्ट किया कि वे कहते हैं कि विष्णु का दसवां अवतार सद् गुरु हैं, तो जरूरी नहीं कि गुरु कोई व्यक्ति ही हो। वह ग्रंथ के रूप में भी हो सकता है। व्यक्ति पूजा होनी भी नहीं चाहिए। गुरु व्यक्ति नहीं एक अस्तित्व होता है।
-संत बापू ने कहा कि प्रकट हुए परमात्मा ब्रह्मा द्वा रा बनाई सृष्टि की उत्पत्ति नहीं हैं। यह उससे भी ऊपर हैं। परमात्मा के बारे में कहा भी गया है कि आप प्रकट भये विधि न बनाए।
-बापू ने भक्तों से कहा कि जिस दिन आपके ह्रदय में राम प्रकट हों, उसी दिन राम नवमी समझ लेना। नर रूप में वे हरि है, पर हैं वे वैष्णव अर्थात अनंत हैं। राम और विष्णु में भेद करना पानी और बर्फ जैसी बात है। पानी जमने पर बर्फ बनता है, पिघलने पर वह फिर पानी बन जाता है। इसलिए राम और विष्णु एक ही हैं। नाम अलग-अलग हैं।
व्यास पीठ संकीर्ण नहीं होती
गुरु महिमा पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि व्यासपीठ राजपीठ की तरह संकीर्ण नहीं होती है। राजपीठ पर बैठने वाला अपने तक सबकों नहीं आने देता, जबकि व्यासपीठ पर बैठे गुरु के लिए सभी समान होते हैं। गुरु का ह्रदय विशाल होता है। उन्होंने कहा कि किसी को गुरु की तलाश में भटकना नहीं चाहिए। जो आपको रास आए, उसे अपना इष्ट बना लें। वे राम-कृष्ण, हनुमान और यहां तक कि राम चरित मानस तक हो सकती है। मानस एक ऐसा ग्रंथ है, जिसे घर में रखेंगे, तो वह गुरु की तरह आपके घर की सुरक्षा करेगा।
प्रकृति के सुख की भावना रखें
संत बापू ने सर्वजन हिताय सर्व जन सुखाय की जगह सर्व भूतो हिताय, सर्व भूतो सुखाय कहने की बात कहीं। उन्होंने कहा कि हमारा कर्तव्य है कि हम केवल जन हित या जन के सुख की ही बात नहीं करें, बल्कि, पेड़-पौधे, नदी, पहाड़, पशु, पक्षी अर्थात प्रकृति का हित हो, ऐसे कार्य करें। ऐसी भावना हमारे मन में होनी चाहिए। प्रकृति सुखी रहेगी, तो ही हम भी सुखी रह सकेंगे।
पेड़ों की केवल पूजा न करें, प्रेम भी करें
उन्होंने कहा कि सार्थकता पेड़ों की पूजा भर करने में नहीं है, बल्कि उनसे प्रेम करने में है। हम जिससे प्रेम करते हैं, उसे कष्ट नहीं पहुंचाते हैं। पेड़ों से प्रेम करेंगे, तो फिर हम उसे काटेंगे भी नहीं। बापू ने सभी से कहा कि वे राम नवमीं पर एक-एक पौधा रोपें। राम नवमीं पौधे रोप कर मनाई जाए, तो बेहतर होगा। वे स्वयं भी इस दिन पौधे रोपेंगे। संत बापू ने कहा कि हम सूरज वे पेड़ पौधों की तरह कर्मवादी बनें। सूरज और पेड़ बगैर आलस्य किए, बगैर अवकाश लिए रोज अपना काम करते हैं, उसी तरह हम अपना काम करते रहें।
बापू ने जीवन से जुड़ी तमाम समस्याओं को सुलझाने को तौर-तरीके भी बताए। उन्होंने ये सीख दीं-
कोई भी वस्तु लें, तो देने वाले के प्रति आभार प्रकट जरूर करें।
अच्छी बातों का अभिमान करें, तो चलेगा, पर पाखंड से बचें।
सूर्य की तरह बनें। वह रात्रि का नाश करने नहीं, सबको रोशनी देने आता है।
मुखरता दोष से बचें। अर्थात बड़बोले न बनें।
कृष्ण की तरह कर्मयोगी बनो। कर्म को प्रधानता दो। राम की तरह मर्यादित रहो।

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રામરાજ્યનું પ્રાણતત્વ જ પ્રેમ હતો : મોરારિ બાપુ

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રામરાજ્યનું પ્રાણતત્વ જ પ્રેમ હતો :  મોરારિ બાપુ

સિટી રિપોર્ટર | ભોપાલ

સંતશ્રીમોરારિ બાપુએ રામકથા મહોત્સવના ત્રીજા દિવસે કહ્યું કે નદીનું અસ્તિત્વ વ્યક્તિના રૂપમાં સ્વીકાર કરવાનો અદાલતનો ચુકાદો ખૂબ પ્રેમાળ છે. જો કોઈ વ્યક્તિ પર કચરો ફેંકવો ગુનો હોય તો નદીમાં કચરો ફેંકવા પર પણ દંડ થવો જોઈએ. વાલ્મીકિ રામકથાના આદિ કવિ છે. રામનવમી રામના જન્મનો દિવસ છે આપણે તે રામનો અનુભવ રામચરિતથી કરીએ છીએ.
કથાનો ત્રીજો દિવસ

  • બધાં પ્રાણીઓ, નદીઓ, પર્યાવરણ, વન અને આકાશનું પણ સુખ આપણી કામનામાં હોય. 
  • રામનવમીના દિવસે જ્યાં કથા છે, ત્યાં વૃક્ષ વાવો. હું પણ 11 છોડ લગાવીને જઈશ. વૃક્ષ ભગવાનના રુંવાડાં છે. 
  • નદીઓમાં શબ ન વહેવડાવો. કિનાર પર એવી પૂજા પણ ન કરો કે પૂજાની સામગ્રી વહીને નદીઓને ગંદી કરે. 
  • વ્યક્તિપૂજામાં ન પડવું જોઈએ. વ્યક્તિમાં નબળાઈ હોય છે. મનુષ્ય સ્વરૂપે અવતાર લેવા બદલ રામ પર પણ આંગળી ઊઠી. કૃષ્ણ તો ચારે તરફથી બદનામ થયા. 
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रामकथा का चौथा दिन: मुस्कराते हुए हर विपरीत स्थिति का सामना करना भी तप है

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भोपाल। कलियुग में उपवास या कोई अन्य साधना करने से भी बड़ा तप है खुश रहना। मुस्कराते हुए हर विपरीत स्थिति का सामना करते हुए उसे सहन करना भी तप है। यह बात आध्यात्मिक संत मोरारी बापू ने कही। वे शुक्रवार को भास्कर परिवार द्व‌ारा लालपरेड स्थित मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में आयोजित राम कथा में बोल रहे थे।
जानें और क्या बोले बापू...
-संत बापू ने युवाओं से कहा कि जब इंटरनेट के जरिए दुनिया उनकी मुट्ठी में है, तो फिर वे महाभारत, गीता व रामचरित मानस जैसे ग्रंथ पढ़ें। पढ़कर समझ में न आए, तो कहीं जाकर सुनें। पढ़ने से अधिक सुनकर अच्छी बातों को आत्मसात किया जा सकता है। उन्होंने यह भी सीख दी कि पेड़ मत काटो, धरती का खनन, दोहन मत करो, नदियों को नुकसान मत पहुंचाओ। ये सब साधु समान हैं। संतों के भीतर वृक्ष, सरिता, धरती व पर्वत के गुण होते हैं।
-संत बापू ने कहा कि कलियुग की सबसे बड़ी साधना दुखों को सहन करना है। मुस्कराते हुए जो सब सहन करे और दूसरों की भलाई ही करे, इससे बड़ा तप और क्या हो सकता है। उन्होंने कहा कि हम उपवास रखते हैं। कई लोग उपवास के दौरान भूख सहन नहीं कर पाते। ऐसी स्थिति में वे क्रोध करते हैं। चिड़चिड़ापन आ जाता है, तो फिर ऐसा उपवास तप नहीं हुआ। तप तो सहन करना होता है।
-उन्होंने रामचरित मानस और अन्य ग्रंथों का जीवन में कितना महत्व है, यह बताते हुए युवाओं से कहा कि अब इंटरनेट के जरिए वे बहुत से ग्रंथ पढ़ कर अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं। ये ग्रंथ हमारे गुरु हैं। पढ़कर समझने में दिक्कत हो तो कहीं जाकर इन पर होने वाली कथाओं को सुने। समाधान जरूर मिलेगा। ऐसे लोगों की बातों में न आएं, जो यह कहते हैं कि कथा सुनने से क्या होता है, वे लोग आपका बहुत नुकसान कर रहे हैं। ग्रंथों का श्रवण करने से एक न एक दिन ऐसा जरूर कुछ घटता है कि जीवन को एक नई दिशा मिलने लगती है। उन्होंने कहा कि पालनहार विष्णु स्वयं तपस्वी हैं।
-संतश्री ने कहा कि संतों में पेड़, नदी, पर्वत व धरती जैसे गुण समाएं रहते हैं। हम इनको नुकसान पहुंचाते हैं, तो समझो साधु का नाश कर रहे हैं। प्रकृति से जुड़ी इन वस्तुओं से खिलवाड़ हमारे अपने जीवन से खिलवाड़ है। उन्होंने कहा कि कलिकाल में समस्याओं के समाधान का एक बड़ा साधन और उपाय हरि नाम है।स्वयं भगवान शिव राम नाम जपते हैं। राम परम तत्व हैं।
मानस कराल भी किरण भी
एक अन्य प्रसंग में उन्होंने कहा कि मोह रूपी रावण को राम ने मारा था। हमारे भीतर महामोह का महिषासुर बैठा है। महिषासुर का वध राम ने नहीं मां काली ने किया था। इसे मारने के लिए हम राम कथा का सहारा लें। राम कथा एक और जहां काली के रूप में कराल है, तो वहीं चंद्रमा की किरणों की तरह उसमें कोमलता-शीतलता भी है।
भक्ति में संशय नहीं, विश्वास जरूरी
उन्होंने कहा कि सती ने शिव की बातों का विश्वास नहीं किया और भगवान की परीक्षा लेने लगीं। इस कारण अंत में उन्हें शिव वियोग का सामना करना पड़ा। शंकर विश्वास हैं। भक्ति में संशय का कोई स्थान नहीं। विश्वास जीवन है, संशय हमें नाश तक ले जाता है।
राम कथा में चौथे दिन भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे। इनमें सैकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो अन्य राज्यों से रामकथा का रसपान करने आए हैं। कथा का समय रोज सुबह 9.30 से 1.30 बजे तक है। समापन 5 अप्रैल को नवमी पर होगा।

जहां हल्ला होता है वहां अल्लाह नहीं होता, पढ़े- मोरारी बापू के ऐसे ही 7 कोट्स

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भोपाल। प्रसिद्ध रामकथा वाचक मोरारी बापू इन दिनों भोपाल में हैं। उनको सुनने के लिए हजारों की संख्या में भक्त आयोजन स्थल पर पहुंच रहे हैं। इन दिनों बापू भोपाल में भास्कर परिवार की पहल पर रामकथा का पाठ कर रहे हैं। लाल परेड मैदान स्थित मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में चल रमहोत्सव के तीसरे दिन गुरुवार को बापू ने भक्तों को पर्यावरण संरक्षण और नशे के खिलाफ उठ खड़े होने का संकल्प दिलाया। कथा के शुरुआती तीन दिनों की खास बातें...
कथा का पहला दिन पांच सूत्र
1. जीवन में एक गुरु तो चाहिए, जो आपका दीप प्रज्ज्वलित करके अलग हो जाए। आत्मज्योति के लिए एक मार्गदर्शक, जो मुक्ति में सहायक हो।
2. धन कमाने की मनाही नहीं है। दोनों हाथों से कमाओ। मगर उसे चार हाथ से बांटो भी। विष्णु के चार हाथ इसी संदेश के प्रतीक हैं।
3. किसी को देखने मात्र से कोई नतीजा न निकालो कि यह काला है, गोरा है, भला है, बुरा है। वह वैसा ही है, जैसी उसकी श्रद्धा।
4. लंबी जिंदगी जीकर भी हम पूज्य नहीं हो पाते। मरने के तुरंत बाद बन जाते हैं। जो मृत्यु को, जहर को स्वीकार ले वही पूज्य। इसीलिए शंकर और जीसस पूज्य हैं।
5. हिंदू परंपरा में धर्म की व्याख्या में आकाश से तुलना की गई है। जिसकी दृष्टि संकीर्ण न हो, विशाल हो। जो सबको समाहित करे, वही सच्चा धर्म।
कथा का दूसरा दिन पांच बातें
1. स्वास्थ्य ठीक न हो तो सबसे पहले इसी का ध्यान रखें। तुलसी को छूने से ही मान लें कि स्नान हो गए।
2. लोग हिमालय घूमने जाते हैं अौर तस्वीरें खींचने में अटक जाते हैं, जबकि वहां हिमालय को आत्मसात करना है।
3. अपने नौकर-चाकरों को प्राणों की तरह प्रिय मानो। वे तुम्हारे सहचर हैं। जहां सेवकों को प्यार नहीं, वहां शंकर, विष्णु किसी का वास नहीं।
4. विष्णु का सवां अवतार सदगुरू होगा। उससे अधिक निष्कलंक और निश्छल कौन हो सकता है।
5. जहां हल्ला होता है, वहां अल्लाह नहीं होता और जहां अल्लाह होगा, वहां हल्ला-गुल्ला नहीं।
तीसरे दिन दिलाए ये संकल्प
पर्यावरण संरक्षण और नशे के खिलाफ उठ खड़े होने का संकल्प लें।
अपने शहर के पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण के लिए आगामी 5 अप्रैल को राम नवमीं पर एक-एक पौधा अवश्य लगाएं।
व्यासपीठ राजपीठ की तरह संकीर्ण नहीं होती है। राजपीठ पर बैठने वाला अपने तक सबको नहीं आने देता, जबकि व्यासपीठ पर बैठे गुरु के लिए सभी समान होते हैं।
सार्थकता पेड़ों की पूजा भर करने में नहीं है, बल्कि उनसे प्रेम करने में है। हम जिससे प्रेम करते हैं, उसे कष्ट नहीं पहुंचाते हैं। पेड़ों से प्रेम करेंगे, तो फिर हम उसे काटेंगे भी नहीं।
कोई भी वस्तु लें, तो देने वाले के प्रति आभार प्रकट जरूर करें।
अच्छी बातों का अभिमान करें, तो चलेगा, पर पाखंड से बचें।
सूर्य की तरह बनें। वह रात्रि का नाश करने नहीं, सबको रोशनी देने आता है।
मुखरता दोष से बचें। अर्थात बड़बोले न बनें।
कृष्ण की तरह कर्मयोगी बनो। कर्म को प्रधानता दो। राम की तरह मर्यादित रहो।
चौथे दिन दिए ये पांच संदेश
1. मैं युवाओं से कहता हूं कि आप रामायण और महाभारत जरूर पढ़िए। या कहीं सुनिए। पढ़ने से सुनना बेहतर है। अब तो दुनिया आपकी मुट्‌ठी में है। पढ़िए।
2. जो कहते हैं कि कथा से क्या होगा, ऐसे आलोचकों की सुनकर भी कथा सुनो। रामकथा श्रवण संस्कृति की प्रतीक है। जो सुनेगा, एक न एक दिन पा जाएगा।
3. पंडित रामकिंकर उपाध्याय ने क्या खूब कहा-गीता में सब योग हैं। रामचरित मानस में सब प्रयोग हैं। इसमें राम परम ऊर्जा और परम तत्व हैं।
4. लोग विचारों को यहां-वहां से ले लेते हैं और मूल विचारक का जिक्र जरूर करना चाहिए। ओशो ने इस बारे में कहा कि कोई फर्क नहीं पड़ता। विचार पहुंचना चाहिए। जब विचार पहुंचेगा तो लोग सुनकर ही जान जाएंगे कि ये किसका है?
5. मानस के विष्णु का लक्षण है तपस्वी होना। परिवार में एक पालनकर्ता के रूप में सब कुछ सहन कर लेना भी बड़ा तप है। विष्णु तो सृष्टि के पालनकर्ता हैं।
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ભોપાલમા આયોજીત ''માનસ બિષ્નુ'' શ્રીરામ કથાનો પાંચમો દિવસ

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રાજકોટ તા. ૧ : ''પરંપરા શીખવાડે તે ગુરૂ'' તેમ પૂ. મોરારીબાપુએ ભોપાલ ખાતે આયોજીત ''માનસ બિષ્નુ'' શ્રીરામકથાના પાંચમાં દિવસે જણાવ્યું હતું.
      પૂ. મોરારીબાપુએ દરરોજના પાંચ નિત્ય કર્મો જેમા નિમિત કર્મ, ક્ષમ્ય કર્મ, પ્રાયશ્ચિત કર્મ, દેશકાળને અનુરૂપ કર્મ સહિતની વિગત વાર માહિતી આપી હતી.
      ગઇકાલે શ્રી રામકથામાં પૂ.મોરારીબાપુએ કહ્યું કે બાબા, તમે મન કયારેક આંબલીરૂપે દેખાવ છો અને કયારેક આંબલીમાં જ તમારૂ સ્વરૂપ દર્શન થાય છે. બાપ, કહેવાનો અર્થ એ કે સાધુ-સંત એ વૃક્ષ છે'' ભોપાલની રામકથાના ગઇકાલે ચૈત્ર નવરાત્રીના ચોથા દિવસે બાપુએ સાધુ એ પંચતત્વ છ, એ પરોપકારી છે. સાધુ, વૃક્ષ, નદી, પર્વત અને ધરતી આ પાંચેય નિજામુદીનનો પ્રસંગ વર્ણવ્યો એમ અન્ય ચાર તત્વ વિશે પણ ચાર મહાપુરૂષો-મહાન અવતારોના જીવનની અદ્દભુત દિવ્ય ઘટનાઓ વિગતે વર્ણવીને સૌ શ્રાવકોને ધન્ય કર્યા હતા એ અન્ય  ચાર તત્વો સંદર્ભે, ચાર મહાન પ્રસંગો 'હૃદયસ્પર્શી' રીતે વર્ણવતા બાપુએ આગળ જણાવ્યુ કે-એ જ રીતે રામકૃષ્ણ ઠાકરુને એક સવા અભણ અને ગામડાનો એક ખેડુત મળવા આવે છે.એ ખેડુત રામકૃષ્ણ ઠાકુર પાસે જાય છે, એની અને ઠાકુરની અરસપરસ દ્રષ્ટિ મળેછે અને અભણ ખેડુત બુમ પાડેછે. એ, ઠાકુર મને તરતા નથી આવડતુ ઠાકુર હું નદીમાં ડુબી રહ્યો છું એ ખેડુતને ઠાકુરના દર્શનમાં ગંગા નદી દેખાતી હતી. હવે બાદશાહ રમણ મહર્ષિ અરૂણાચલના યોગીના પ્રસંગ સાંભળોઃ બાદશાહ રમણ ગુફામાં બેઠા છે, એની પાસે છેક ર્જનીથી એક સાધક, એનુ નામ પીટ્સ હતું.-એ આવે છે. રમણો પીટ્સને કહ્યું આવો, પાસે આવો...પીટ્સ કહે છેઃ મને લાગે છે કે હવે હું વધુ પાસે આવીશ તો મારૂ માથું ભટકાશે, કોઇ પર્વતના પથ્થર સાથે મારૃં માથુ અથડાશે! એ જર્મની પીટ્સને બાદશાહ રમણમાં આખો અરૂણાચલ પર્વત દેખાતો હતો ! પર્વત સાધુ છે.

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भोपाल। लाल परेड मैदान स्थित मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में संत मोरारी बापू ने पांचवें दिन राम कथा के माध्यम से जीवन को सार्थक, शालीन और संस्कारी बनाने के कई सूत्र दिए। उन्होंने कहा कि जीवन में खुश रहना बहुत जरूरी है। जो खुश नहीं, उसका जीवन बेकार है।
यह बोले बापू...
-उन्होंने कहा कि पूजा-पाठ करना सब व्यर्थ है, यदि आपके भीतर ईर्ष्या, पर निंदा और द्व‌ेष का भाव कायम है तो। इन तीनों अवगुणों को बाहर करने के लिए अपने भीतर सत्य, प्रेम व करुणा का प्रवेश कराओ।
-क्रोध, लोभ व मोह मनुष्य की जन्मजात प्रवृत्ति होती है, पर इन्हें नियंत्रित तो किया ही जा सकता है। जिस तरह हमें पंखे और कूलर का स्विच घुमाकर उसे उसी नंबर पर ले आते हैं, जितनी हवा की हमें जरूरत है। वैसे ही हम क्रोध व लोभ को नियंत्रित करने का स्विच अपने हाथ में रखें। ये काम सद्गुरु की शरण में रहकर सीख सकते हैं। भजन व सत्संग करने लगेंगे, तो कुसंग अपने आप छूट जाएगा। तब हमारे भीतर की ये बुराइयां भी दूर होने लगेंगी।
-संत बापू ने कहा कि जीवन तब अपने आप मर्यादित, अनुशासित और व्यवस्थित हो जाएगा, जब आप अपने भीतर छिपी तीन बुराइयों, काम,क्रोध व मोह को बाहर निकाल दोगे। एकदम ऐसा कर पाना सभी के लिए संभव नहीं है। इसका तरीका ये है कि कुसंग को छोड़ने के लिए सत्संग करो। कुसंग अपने आप छूट जाएगा।
प्रेम करने वाला संसार में रहकर भी संयासी
उन्होंने उन लोगों को आगाह किया कि पूजा-पाठ उपवास आदि करना सब व्यर्थ चला जाएगा, यदि आपने अपने भीतर से प्रेम, करुणा और सत्य का भाव नहीं रखा तो। जीवन में सभी से प्रेम करे। प्रेम करने वाला संसार में रहते हुए भी संयासी होता है, जबकि नफरत का भाव रखने वाला संयासी भी घोर संसारी होता है।
युवाओं को सीख
उन्होंने कहा कि युवा देश का भविष्य हैं। उन्हें आगे बढ़ना है तो इन तीन बातों का ध्यान रखें। कभी किसी से ईर्ष्या न करें। द्व‌ेष न करें, पर निंदा भी न करें। परनिंदा सबसे बड़ा पाप और परम धर्म अहिंसा है। उन्होंने कहा कि प्रेम की शुरुआत अपने परिवार से ही करें। भाई-भाई से प्रेम करें, सास अपनी बहू से प्रेम करे, देवरानी अपनी जिठानी से प्रेम करे। इस तरह हम सभी से प्रेम का भाव रखेंगे, तो निंदा का हमारे जीवन में कोई स्थान ही नहीं बचेगा। इस सबको करने के लिए अपनी सोच को सकारात्मक बनाएं।
खुश रहना सीखो
संतश्री ने कहा कि अब जीना सीखो। बहुत व्यर्थ समय गंवा दिया। जो खुश नहीं है, उनका जीना भी क्या जीना है? जीवन में सदैव जाग्रत रहे, जीना सीख जाएंगे। उन्होंने मानस विष्णु की चर्चा करते हुए कहा कि विष्णु का एक नाम कामदेव भी है। इसका अभिप्राय यह है कि वे सबको चाहने वाले हैं। वे निष्काम हैं। जगत के पालनहार हैं। भगवान को पाने के लिए कहीं खोजने न जाएं। वह हर जगह है। बस जरूरत हमें उसकी पहचान करने की है।
सीख:-
-संत बापू ने कहा कि हमारा राष्ट्र ध्वज तिरंगा खादी का होना चाहिए। नेता भी खादी के वस्त्र पहनें तो बहुत अच्छी बात है।
-सभी धर्म समान हैं। कोई बड़ा छोटा नहीं। संत तुलसी दास ने अहिंसा को परम धर्म माना है।
-कथा सुनने कहीं भी जाएं, तो कोई न कोई अच्छी बात अवश्य साथ लेकर आएं, जो आपके काम की हो।
-खुश रहने की आदत डालें, अपनी सोच को सकारात्मक बनाएं।

     
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भोपाल। लाल परेड स्थित मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में राम कथा के छठवें दिन रविवार को मोरारी बापू ने श्रोताओं को राम नाम संकीर्तन की सरिता में गोते लगवाए। वहीं, जीवन की नैया पार लगाने के नए सूत्र भी दिए। उन्होंने कहा धर्म को बोझ मत समझो। धर्म बंधन नहीं, वह तो मुक्ति की राह दिखाता है। बस हर हाल में प्रसन्न रहो। प्रसन्न रहना भी बंदगी है। खचाखच भरे पंडाल में देश के कई अन्य राज्यों से आए भक्त भी मौजूद थे। बापू ने उनके प्रश्नों के उत्तर देने के साथ ही मार्गदर्शन भी दिया कि वे जीवन को सार्थक बनाने और संवारने के लिए क्या करें और क्या न करें। पढ़ें पूरी खबर...

इन 6 मौकों पर क्रोध न करें-
सुबह जब जागें, काम के लिए घर से निकलें, भोजन कर रहे हों तब, भजन के समय, घर लौटने पर और सोने के पूर्व। इन छह अवसरों पर सदैव क्रोध करने से बचना चाहिए। जीवन में शांति आएंगी और तनाव से मुक्ति मिलेगी। ऐसा होगा तब जीवन में प्रसन्नता का प्रवेश होने लगेगा।

स्वर्ग-नरक के चक्कर में न पड़े
राम कथा के माध्यम से जीवन जीने की कला को सरल व सहज तरीके से सिखाने का बापू का अपना एक विशिष्ट अंदाज है। अपनी इसी शैली में उन्होंने सहजता से सबको समझा दिया कि स्वर्ग-नरक के चक्कर में न पड़े। सब कुछ यहीं है। कर्म करते रहे, उसके अच्छे परिणाम जरूर मिलते हैं। उन्होंने कहा कि जगत में कुछ भी व्यर्थ नहीं है। विधि ने सब कुछ सुनियोजित रूप से रचा है। ईश्वर की इस सृष्टि में परिवर्तन है पर पुनरावर्तन नहीं है। यहां तक कि एक ही पेड़ के सभी पत्ते थोड़ा-थोड़ा अलग होते हैं। कुछ न कुछ फर्क उनमें अवश्य होता है।


महापुरुषों व संतों से शिक्षा लें युवा
उन्होंने युवाओं से कहा कि वे महापुरुषों व संतों से शिक्षा व प्रेरणा लें, पर ठीक उन जैसा बनने की न सोचें। स्वयं के भीतर जो प्रतिभा है, उसे ही संवारे, निखारें। अपने मौलिक स्वरूप में आगे बढ़े। खूब पढ़े, स्वाध्याय करें। उन्होंने कहा कि आत्म बल बढ़ाए। इसके लिए सत्संग करना चाहिए। पूजा-पाठ का समय न मिले तो कोई बात नहीं। केवल भगवान का नाम ही जपें। इससे भी आत्मबल बढ़ता है। उन्होंने कहा कि नौकरी को जीवन का लक्ष्य मत समझो। नौकरी राजमार्ग नहीं। राजमार्ग तो सत्य, प्रेम व करूणा करूणा का मार्ग है। हमारा लक्ष्य होना चाहिए, आनंद और प्रसन्नता।

बच्चों के बस्ते में भार न डालें
संतश्री ने अभिभावकों से कहा कि वे बच्चों पर बस्ते का भार न डालें। पढ़ाई को उनके लिए बोझ न बनने दें। बच्चों को आंगन भी दें। अर्थात खेलने का भी अवसर दें। उसका तनाव दूर हो जाएगा। बच्चे पढ़ते नहीं है, इसलिए उनकी निंदा न करें, बल्कि निदान खोजें। सत्य ही स्वर्ग है और निंदा नरक है। ये मान कर चलें। उन्होंने कहा कि स्वर्ग व बैकुंठ में भगवान मिल सकते हैं, पर उनकी कथा नहीं। असली स्वर्ग का आनंद तो उनकी कथा में है। उन्होंने कहा कि क्रोध न करें तो अच्छा है, पर कभी-कभी ये करना पड़ता है। क्रोध किन मौके पर न करें, ये बात उन्होंने बताई।


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Rajesh Chanchal/shaan bhadur | Apr 04, 2017, 10:11 IST

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भोपाल। लाल परेड स्थित मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में राम कथा के सातवें दिन संत मोरारी बापू ने कहा कि जीवन यात्रा के पथ में खुशियों से भरा मोड़ आए, तो धर्म की सवारी करें। बैल अर्थात वृषभ धर्म का प्रतीक है और शिव दूल्हा बन कर इसी पर सवार हुए थे। शिव विवाह प्रसंग की चर्चा के माध्यम से बापू ने सीख दी कि घर में बेटे से अधिक बेटी के जन्म पर खुशियां मनाओ, क्योंकि बेटा केवल एक कुल को जबकि माता-पिता, सुसराल व नाना-नानी के कुल को तारती है। उन्होंने बेटियों से कहा कि वे जितना चाहें पढ़ें पर संस्कारों को कभी न भूलें। पढ़ें पूरी खबर...

सुनाया शिव प्रसंग
संत मोरारी बापू ने स्पष्ट कहा कि जीवन यात्रा यदि एक ही ढर्रे पर चल रही है, तो उसे एक नया मोड़ दें। यात्रा में यह मोड़ तभी आएगा, जब हम धर्म पर सवारी करेंगे। बैल धर्म का प्रतीक है। यह भगवान शिव की सवारी है। शिव अपने विवाह में दूल्हा बन कर बैल पर सवार हुए तो उल्टे बैठे थे। बारातियों ने समझाया कि जिस तरफ बैल का मुख है, आप भी उसी तरफ मुख करके बैठे। इस पर शिव ने जवाब दिया कि, बैल को ही मोड़ कर उसकी दिशा बदल दो, मेरे मुख की दिशा भी बदल जाएगी। इस प्रसंग में भगवान शिव का यहां संदेश निहित्त है कि जीवन यात्रा में मोड़़ आए और वह सुपथ पर चले। इस यात्रा में विवाह उत्सव जैसा आनंद आए तो बैल रूपी धर्म की सवारी करें। धर्म की राह ही वृषभ की सवारी है। माता पार्वती की विवाह के बाद विदाई के प्रसंग को केंद्र में रख कर उन्होंने कहा कि हर पिता के लिए बेटियां उनके कलेजे के टुकड़े के समान होती हैं। हिमालय राजी भी पार्वती की विदाई के समय अपने आंसू नहीं रोक सके थे। फिर हम सब तो सामान्य मानव हैं।
समझाया प्रेम का अर्थ
उन्होंने प्रेम और भक्ति के अंतर को बताया। कहा कि कई बुद्घ पुरूषों ने प्रेम को ही भक्ति तो किसी ने भक्ति को हरी प्रेम कहा है। वास्तविक अर्थों में प्रेम पुरुष और भक्ति स्त्री है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। वह भी ऐसा पुरुष जो निरअहंकारी हो। जिसमें तनिक भी मद और अहंकार न हो। भक्ति सीता है। प्रेम अचल होता है। यह केवल एक दिन करने की वस्तु नहीं है। हमें प्रेम दानी बनना चाहिए। प्रेम तब सार्थक होता है, जब हम स्वयं को पूरी तरह अर्पित कर दें।
संतश्री ने नानक, तुकाराम, मीरा, तुलसी आदि का उदाहरण देते हुए कहा कि ये लोग जगत के हित के लिए हमेशा जाग्रत रहे। बापू ने कहा कि हम अपने स्वयं के कल्याण के प्रति भी लापरवाह रहते हैं। ये लोग ऐसे थे, जो दूसरों के कल्याण के लिए सोचते रहे। हमें चाहिए कि हम भी निष्काम भाव से अपने कर्म करें। उन्होंने पुन: दोहराया कि विष्णु का दसवां अवतार कोई बुद्ध पुरुष ही होगा। उन्होंने कहा कि बुद्ध पुरुष वे होते हैं, जो हर परिस्थिति में शांत रहें। निरपेक्ष रहें।
कलियुग में राम का नाम राजा हैःबापू
संत बापू ने कहा कि हमारे छोटे-बड़े पुण्य प्रजा हैं और राजा राम हैं। कलियुग में राम का नाम राजा है। इसे जपते रहे, यही तारनहार है। उन्होंने कहा कि हमें दर्पण में स्वयं को देखते रहना चाहिए। इसका अर्थ है कि हम ये जानते-समझते रहें कि हमारी दशा और दिशा अब कैसी है। राजा दशरथ ने दर्पण देखा। सोचा कि अब बाल सफेद होने लगे हैं, तो उन्होंने बेटे राम को राज सत्ता सौंप दी। उन्होंने कहा कि गंगा भारत का दर्पण है, जीवन है। उनका आशय शायद यहीं था कि गंगा देख कर हम भारत की स्थिति का पता लगा सकते हैं।

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अच्छे परिणाम अहिंसा से ही आएंगे, ह्रदय की अयोध्या में राम को बिठाएं: संत बापू
Rajesh Chanchal/shaan bhadur | Apr 04, 2017,


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भोपाल। लाल परेड मैदान स्थित मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में चल रही राम कथा सदैव के लिए यादगार बन गई, जब लोगों ने रामचरित मानस के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता संत मोरारी बापू के संग राम जन्मोत्सव की खुशियां मनाईं। इस दोहरे आनंद का नजारा भी अनूठा और अनुपम था।पढ़ें बापू के प्रवचन...
-बापू ने जैसे ही राम जन्मोत्सव प्रसंग की चर्चा के दौरान संगीत की मधुर स्वर लहरियों के बीच भये प्रकट कृपाला स्तुति... का गान शुरू किया, लोग खुशी से झूम उठे। कोई बापू के स्वर में स्वर मिला रहा था तो कोई नृत्य में मगन था। किसी ने फूल बरसाएं तो कोई लड्डू बांट रहा था। इसके पूर्व संतश्री ने कहा कि राम का सुमिरन करते जिस दिन आंखें नम हो जाएं उसी दिन रामनवमी मान लेना। उन्होंने कहा कि राम जन्म ही नहीं ये राम चरित मानस का भी प्राकट्य दिवस है।
-भास्कर परिवार की पहल पर आयोजित राम कथा में मंगलवार को संत बापू ने राम जन्मोत्सव से जुड़े प्रसंगों की चर्चा की। जैसे ही बापू ने भये प्रकट कृपाला का उद्घोष किया लोग खुशी से झूम उठे। कई महिला-पुरुषों ने अपनी खुशी का इजहार जयकारे लगा कर किया तो कुछ अपने पांव की थिरकन नहीं रोक सके और उठ कर झूमने लगे। आरती की मधुर स्वर लहरियों के बीच वातावरण में उल्लास छाया गया। कथा पंडाल में अयोध्या सा नजारा देखने को मिला। इस मौके पर संत बापू ने भगवान के अवतार के रहस्य और उनके उद्देश्यों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जब-जब धर्म की हानि होती है, तब भगवान अवतार लेते हैं। उनकी मान्यता है कि विष्णु का दसवां अवतार किसी बुद्व‌पुरूष के रूप में होगा।
अच्छे परिणाम अहिंसा से ही आएंगे
कथा के विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से उन्होंने कहा कि समय आ गया है, जब लोगों को यह समझ लेना चाहिए कि दुनिया में कितने ही युद्ध लड़े गए, बहुत हिंसा की गई, परंतु दुनिया में अशांति बरकरार रही। अच्छे परिणामों के लिए अहिंसा का पालन करना जरूरी है। हिंसा आग में घी डालने भर का काम करती है। सभी को चाहिए कि वे प्रेम व सत्य के मार्ग पर चले। दिल में सदैव करुणा का भाव रहे।
राम हैं निराकार ब्रह्म
उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु के सहस्त्र नाम है। इनमें से हम कोई एक नाम का चयन कर उसे जपें। नाम चयन करने मे दुविधा हो तो फिर अपने गुरु या किसी बुद्ध पुरुष से नाम लें ले और ताउम्र उसे जपें और उस पर भरोसा करें। संत तुलसी ने कहा है कि राम निराकार ब्रह्म हैं। इनका तो नाम ही तारनहार है। उन्होंने कहा कि अपने ह्रदय को अयोध्या बनाकर उसमें राम को विराजमान कराएं। ऐसा करने पर ह्रदय प्रेम से भर जाएगा। प्रेम शाश्वत है और नफरत नाश करने वाली है।
महाभारत पढ़ें, महान भारत के दर्शन होंगे
संतश्री ने कहा कि घर में महाभारत ग्रंथ नहीं रखना चाहिए ये महज एक भ्रांति पूर्ण धारणा है। महाभारत जरूर पढ़ना चाहिए। इसे पढ़ने पर महान भारत के दर्शन होते है। जीवन की विपरीत परिस्थितियों से कैसे पार पाया जाए, इसके सूत्र इसमें समाए हुए हैं। यह ग्रंथ रत्नों की खान है।
उन्होंने कहा कि जब पार्वती जी भगवान शिव से राम की कथा सुन रहीं थी, तो वह पूरी तरह से सजधज कर बैठी थीं। हमें भी कथा को पूरी तरह से तैयार होकर अर्थात सजग रह कर श्रवण करना चाहिए। आलस्य व प्रमादी बन कर कथा का श्रवण करने से कोई लाभ नहीं होता है। राम कथा समस्त लोगों पवित्र करने वाली गंगा है।

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The article "रामकथा के जरिये लोगों को जीवन जीने का सूत्र बताकर भावुक मन से विदा हुए बापू"published in the Dainik Bhaskar is displayed here with their courtesy.



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भोपाल। लाल परेड स्थित मोतीलाल नेहरु स्टेडियम में बुधवार को भास्कर परिवार द्व‌ारा आयोजित राम कथा के अंतिम दिन संत मोरारी बापू की मुखर वाणी का जादू भक्तों के सिर चढ़ कर बोला। हालांकि जब बापू विदा होने लगे, तो जनमानस भावुक हो उठा। यह देखकर बापू की आंखें भी नम हो गईँ।

बापू ने दोपहर ठीक 12 बजे जैसे ही राम लला के जन्म की उद्घोषणा करते हुए भये प्रकट कृपाला दीन दयाल स्तुति का गान शुरू किया, पंडाल में खुशियां छा गईं। करतल ध्वनि और संगीतमय स्तुति की मधुर स्वर लहरियों ने वातावरण को सरस और भक्तिमय बना दिया। भगवान के जन्म की खुशी में कोई जयघोष कर रहा था, तो किसी के पांव थिरक रहे थे।
इस दौरान बापू ने भाव विभोर राम रसिक श्रोताओं से कहा कि राम कथा मनुष्य बनने का फार्मूला है, इसे आत्मसात कर लो, जीवन सफल और सार्थक हो जाएगा। कथा के अंतिम दिन उन्होंने सभी से कहा कि सभी खुश रहना, अलविदा,राम कृपा से हम फिर मिलेंगे...!
ऐसा था माहौल
समापन दिवस पर राम कथा के रस में सराबोर होने आए लोगों की संख्या रोज से अधिक थी। इनमें महिलाएं और युवा भी शामिल थे। बापू ने कहा कि प्रेम और भक्ति जिसके पास होती है, उसे फिर दु:ख नहीं आ सकते। प्रेम हमारी दिशा बदलता है, और भक्ति दशा बदल देती है। वैष्णवी भक्ति विशाल है। राम कथा मनुष्य बनने का फार्मूला है। इसे अपने भीतर उतारें। यह कथा तारनहार बन सकती है। राम की कथा है। राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। उनके जीवन में प्रेम है, तो मर्यादा और अनुशासन भी है।
यज्ञ, दान व तप जरूर करो
संत बापू ने कहा कि मनुष्य को चाहिए कि वह यज्ञ, दान व तप जरूर करे। उन्होंने इन तीनों की महिमा बताई। उन्होंने इसके आध्यातिमक व सांकेतिक पहलू पर प्रकाश डाला। यज्ञ से बुद्धि शुद्ध होती है। यज्ञ का अर्थ है कि आपके विचार सकारात्मक हों, आप भूखे को खाना खिलाएं, गरीब बालक की स्कूल फीस जमा करा दें, सदैव सत्य बोलें। यह भी एक प्रकार का यज्ञ है। दान भी करें। दान परोपकार के रूप में भी होता है। लोगों से मीठा बोलें, हर संभव मदद के लिए तत्पर रहें। अपने ही नहीं दूसरों के सत्य को भी कबूल करें। सत्य को सत्य रहने दें, उसे पंगु न बनाएं। आप सच्चे हैं, पर कोई आपकी बात नहीं मानता को क्रोध न करें। सहनशीलता बनाए रखें। यह भी तप है।

सत्य, प्रेम व करुणा का होना जरूरी
उन्होंने कहा कि परमात्मा की निकटता पाने के लिए हमारे भीतर सत्य, प्रेम व करूणा का भाव होना जरूरी है। राम नाम का सहारा लो। इन तीनों का आपके जीवन में जरूर प्रवेश होगा। राम परम तत्व हैं। राम से ही कई विष्णु प्रकट होते हैं। उन्होंने कहा कि छूआछूत व भेदभाव कभी मत करना। सभी मनुष्य समान हैं। राम भीलनी शबरी के घर गए और अहिल्या को भी तारा।

बापू ने युवाओं को सीख दी कि वे बुजुर्गों का सम्मान करें। उनसे उनके अनुभवों का लाभ लें। पढ़ें पर भारतीय संस्कृति व संस्कारों को भी अपनाएं। सत्य को अपना स्वभाव बना लें। दूसरों को सुधारने की अपेक्षा स्वयं सुधरने का प्रयास करें।
प्रिय बापू से बिछुड़ने का दु:ख, आंखों से झलका
नौ दिवसीय राम कथा के समापन दिवस पर रामनवमीं की खुशियां मना रहे लोगों के चेहरों पर प्रसन्नता झलक रही थी। वह पल भी आया जब नौ दिनों तक रोज कथा सुनने आ रहे बहुत से लोगों की आंखें नम हो गईं, जब बापू ने कथा समापन की घोषणा की। इन लोगों को अपने प्रिय संत बापू से बिछुड़ने का दु:ख हो रहा था। कई लोग चर्चा कर रहे थे कि बापू 12 साल बाद कथा करने आए, अब पता नहीं कब भोपाल आएंगे..!

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રામ કથા - ભોપાલ

રામ કથા - ભોપાલ

મંગળવાર, તારીખ ૨૮/૦૩/૨૦૧૭ થી બુધવાર, તારીખ ૦૫/૦૪/૨૦૧૭

લાઈવ - આસ્થા ચેનલ

મંગલ પ્રારંભ : મંગળવાર, તારીખ ૨૮/૦૩/૨૦૧૭, સાંજના ૦૪.૦૦ કલાક 

Sunday, March 26, 2017

સાધુ એ કોઈ વર્ણ નથી

સાધુ એ કોઈ વર્ણ નથી


  • સાધુ એ કોઈ વર્ણ નથી. 
  • એને અક્ષરમાં લાવી ન શકાય. એ કંઈક જુદું જ તત્ત્વ છે. સાધુ એ કોઈ વર્ણ નથી. સાધુ કોઈ વર્ણ, જાતિ કે જ્ઞાતિ નથી. ‘રામચરિત માનસ’ના આધારે સાધુ, સમાજ છે. ‘સાધુસમાજ પ્રયાગ’ એમ કહેવાયું છે. સાધુતાનું શરીર તો ગુરુના ગર્ભમાં જ પાકે. 
  • ‘ગુરુ! તારા ત્રણ ગર્ભ કે એટલે કે અમારા છોકરાને તારા નયનમાં, તારા મનમાં અને તારા તનની આજુબાજુ રાખજે.’ નેત્ર એ સદ્દગુરુનો ગર્ભ છે.
  • ગુરુ બાળકને એની નજરમાં રાખે છે, એના નેત્રમાં રાખે છે. ગુરુ એ છે જે આશ્રિતને પોતાના મનમાં રાખે અને એ જ્યાં હોય એની આજુબાજુ રહીને કવચ બને છે. 
  • એટલે સાંસારિક ગર્ભમાંથી તો આપણું એક પાંચ ભૌતિક શરીર બંધાતું હોય છે, પણ ગુરુના ગર્ભમાંથી આપણે સાધુતાનું એક નવું રૂપ લઈએ છીએ. બધા જ મહાપુરુષો એના ગુરુના કોઠામાંથી નીકળ્યા છે. ગુરુનો ગર્ભ મૂળ સ્વભાવને જુદી રીતે દીક્ષિત કરી નાખે છે.
  • તેઓ સમાજને સુધારવા નહોતા નીક‌ળ્યા, સમાજને સ્વીકારવા નીકળ્યા હતા અને જેણે સમાજને સ્વીકાર્યો, એણે અડધો સુધારી નાખ્યો. સાધુઓની જગ્યાઓએ સ્વીકારવાની પહેલી પ્રવૃત્તિ કરી. અને સુધારવાનું તો એને પગલે-પગલે પછી થયું.


રજમાં મટાડ્યો એણે કજિયો,
કહો, મારા સદ્દગુરુએ કેવો હરિ ભજિયો...

  • કોઈ ગુરુ પૂરી કૃપા કરે તો પચે જ નહીં. આપણા કોઠા એટલા મજબૂત નથી! 

(સંકલન : નીતિન વડગામા)

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Saturday, March 25, 2017

આપણા જીવનના વૃક્ષનું મૂળ છે આપણો પોતાનો સ્વભાવ

આપણા જીવનના વૃક્ષનું મૂળ છે આપણો પોતાનો સ્વભાવ


  • અને એ બે હાથમાંનો એક હાથ નિંદા કરનારાઓ ઉપર છે અને એક હાથ સ્તુતિ કરનારાઓ ઉપર છે. બસ, આટલામાં બધું સમજી જજો!
  • એમ છતાં પણ હું તમને પ્રાર્થના કરું કે હવે થોડાં જીવનનાં વૃક્ષને જુઓ, જેથી ક્યારેક હનુમાનજીને તમારા વૃક્ષ પર આવીને છુપાઈ જવાની ઇચ્છા થાય. 
  • વૃક્ષનાં દરેક પાસાંને તમે જુઓ. એક તો એનું મૂળ છે, જે જમીનમાં છુપાયેલું છે. એ દૃશ્યમાન નથી, અદૃશ્ય છે. મૂળ પછી આવે છે થડ. પછી આવે છે શાખાઓ અને એ શાખાઓમાં પર્ણ આવે છે. પછી આવે છે ફૂલ અને ફળ. અને જ્યારે ફળ પાકે છે ત્યારે કોઈ શુક આવે છે, કોઈ પક્ષી આવે છે. પક્ષી તો આગંતુક છે. એને બાજુએ રાખો, પરંતુ વૃક્ષનાં આ પાસાંઓને સમજો. મૂળ, થડ, શાખાઓ, પર્ણ, ફૂલ, ફળ અને એના ફળમાં જ રસ સમાહિત છે. કોઈ પણ વૃક્ષની આ છબિ છે.
  • આપણા જીવનનાં વૃક્ષનું મૂળ છે આપણો પોતાનો સ્વભાવ. મારા ગોસ્વામીજીએ યોગ્ય લખ્યું છે કે, ‘મિટઇ ન મલિન સુભાઉ.’ પ્રત્યેક વ્યક્તિના જીવન-વૃક્ષનું મૂળ છે એનો પોતાનો સ્વભાવ. માણસનો વિકાસ નિજ સ્વભાવને અનુકૂળ હોવો જોઈએ. 

યસ્માન્નોદ્વિજતે લોકો લોકાન્નો દ્વિજતે ચ ય:
હર્ષામર્ષભયોદ્વેગૈર્મુક્તો ય: સ ચ મે પ્રિય:


  • ગોવિંદ કહે છે કે એવા સાધક મને પ્રિય છે, જેમને કારણે દુનિયાના કોઈ પણ જીવને ઉદ્વેગ નથી થતો અને જે સ્વયં પણ દુનિયાને કારણે ઉદ્વેગ નથી પામતા. અને પછી જેમને નથી હર્ષ કે નથી અમર્ષ. નથી ભય કે નથી ઉદ્વેગ. કોઈ વ્યક્તિનું જીવન-વૃક્ષ એમના સ્વભાવમાંથી ઊગ્યું છે અને એ તમારો દ્વેષ કરીને તમને ઉદ્વિગ્ન કરવાની ચેષ્ટા કરતા જ રહે, તો એ સમયે તમે ઉદ્વિગ્ન ન થાઓ, એમને ક્ષમા કરો, એવું ‘ગીતા’માં શ્રીકૃષ્ણએ અર્જુનને ઉપદેશ આપતાં કહ્યું છે.
  • આ જગતની સમગ્ર પરંપરા કહે છે કે અહીં જ્યારે કોઈને કોઈએ માર્યા છે ત્યારે પોતાના લોકોએ જ માર્યા છે! 
  • આ એક વાત સમજો કે સમજી-વિચારીને આપણે કોઈને ઉદ્વિગ્ન ન કરીએ. પોતાના સ્વભાવને કારણે કોઈ ઉદ્વિગ્ન થઈ જાય તો એનું દાયિત્વ આપણા પર નથી. એવી જ રીતે સામેની વ્યક્તિ પોતાના સ્વભાવ મુજબ જે વર્તન કરે છે એને કારણે તમે ઉદ્વિગ્ન ન થાઓ. 
  • જે કોઈથી ઉદ્વિગ્ન ન થાય, જે કોઈને ઉદ્વિગ્ન ન કરે તેમજ જેમને નથી હર્ષ કે નથી અમર્ષ એટલે કે ક્રોધ, ઈર્ષા કે ભય એ સાચો સાધક છે.
  • સમુદ્ર આટલો ઊછળે છે, કૂદે છે, ગર્જે છે, પરંતુ માછલીઓને કોઈ ભય નથી, કોઈ અમર્ષ નથી, કોઈ ચિંતા નથી. આપણે સૌ પણ ભવસિંધુનાં તરંગોમાં છીએ. એ તત્ત્વજ્ઞાનને સમજી લો. 


(સંકલન : નીતિન વડગામા)

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‘ભાગવતજી’ અને ‘માનસ’ પ્રત્યેક ઇન્દ્રિયને દીક્ષિત કરે છે

‘ભાગવતજી’ અને ‘માનસ’ પ્રત્યેક ઇન્દ્રિયને દીક્ષિત કરે છે

‘ભાગવતજી’ અને ‘માનસ’ પ્રત્યેક ઇન્દ્રિયને દીક્ષિત કરે છે

  • તાત્ત્વિક દૃષ્ટિએ જોઇએ તો એ પણ સારું છે કે વટની નીચે જ કથા થાય. કેમ કે વટ વિશ્વાસનું પ્રતીક છે, ધ્રુવતાનું પ્રતીક છે. એટલા માટે કથા તો વિશ્વાસની છાયામાં જ થવી જોઇએ. સંશય અને સંદેહની છાયામાં તો કથા કથા નથી રહેતી, વ્યથા નિર્મિત કરે છે. 
  • અક્ષયવટનો સીધોસાદો અર્થ છે કે એનો ક્ષય નથી થતો, એનો નાશ નથી થતો. 
  • તો વટનું વૃક્ષ ક્યારેક આપણી પાત્રતા સિદ્ધ કરે છે. સાધકની અચલતા તરફ ઇંગિત કરે છે વટનું વૃક્ષ. આ ભજન આપણે કરીશું તો આપણો ક્ષય નહીં થાય. આ વટનું વૃક્ષ પરમાત્માએ આપણને જે દિશા અને દશા આપી હોય એમાં આપણી સ્થિરતા આપણે નહીં ચૂકીએ, એવો સંકેત કરે છે. એ પણ વટવૃક્ષનો કોઇ ને કોઇ રૂપમાં તાત્ત્વિક સંકેત છે.
  • ગોદાવરીના એક-એક અક્ષરનો અર્થ કરીએ તો ‘ગો’ એટલે ઇન્દ્રિય. અંત:કરણ ચતુષ્ટય મેળવી દો તો ચૌદ ઇન્દ્રિયો થાય. દશ બહિર અને ચાર આંતરિક. 
  • ‘દા’નો અર્થ છે દાતારી. દાતારીનો અર્થ છે ઉદારતા. કોની સામે દાતાર થવું છે? મારી રીતે એની વ્યાખ્યા કરું તો મારાં યુવાન ભાઇ- બહેનો, આ દાતારી સાધકને પોતાની ઇન્દ્રિયો પર કરવાની છે. આપણી ઇન્દ્રિયો પર ઉદાર થવાનું છે. આપણી ઇન્દ્રિયો સાથે દગો કરવાનો નથી. આપણને શીખવવામાં આવ્યું છે કે ઇન્દ્રિયોને દબાવો! એ ઇન્દ્રિયો પર ઉદારતા નથી. તો ઇન્દ્રિયોનું શોષણ ન કરવું. ઇન્દ્રિયોને કાપીએ નહીં, કષ્ટ આપીએ નહીં. ‘ભાગવતજી’ અને ‘રામચરિત માનસ’ પ્રત્યેક ઇન્દ્રિયને દીક્ષિત કરે છે.
  • કાન છે તો આનંદ આવે એવું સાંભળ. જીભથી સારું બોલ. ઇન્દ્રિયોને કષ્ટ ન આપો. 
  • શરીર પરમાત્માના ભજનનું સર્વશ્રેષ્ઠ સાધન છે, દેવદુર્લભ સાધન છે. 
  • ગોદાવરીનો ત્રીજો અક્ષર ‘વ’. ‘વ’નો અર્થ છે કે ગોદાવરી વર્ગભેદ, વર્ણભેદ નથી કરતી. ગોદાવરી એમ નહીં કહે કે દલિત.
  • પંચભૂતનું બનેલું શરીર તાત્ત્વિક રૂપમાં ઓલરેડી પંચવટી છે જ. 
  • ‘રી’નો અર્થ છે કે એ બીજાને રાજી રાખવાનો, પ્રસન્ન કરવાનો જ સંદેશ આપે છે. 

(સંકલન : નીતિન વડગામા)


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સદ્દગુરુ પોતે દુ:ખી થાય,પણ એ કોઈને દુ:ખી ન કરે

સદ્દગુરુ પોતે દુ:ખી થાય,પણ એ કોઈને દુ:ખી ન કરે

  • ચાર પ્રકારના રાજા હોય. એક, એની હયાતી જ પૂરતી હોય, જેનું હોવું બધામાં વ્યાપી જાય. બે, જેને લોકો પૂજે છે. ત્રણ, એક એવો રાજા જેને બધા પ્રેમ કરે અને ચાર, લોકો એનાથી ડરે. 
  • બુદ્ધપુરુષ પણ ચાર પ્રકારના હોય. 
  • કોણ સદ્દગુરુ, કોણ આપણો કર્ણધાર? અને કયો બુદ્ધપુરુષ, જે મને અને તમને પોષે, શોષે નહીં. આપણે ત્યાં ગુરુ માટે બોલાતા ચાર શબ્દોનો ઉપયોગ કરું છું-કુલગુરુ, ધર્મગુરુ, સદ્દગુરુ અને જગદ્દગુરુ.
  • બધાં એને જુએ તો ઓળખે, પણ એના મૂળ મર્મને ઓળખી ન શકે. આવું એક તત્ત્વ, જેને જગદ્દગુરુ કહેવાય, એ અધ્યાત્મજગતના શાસક છે. જગદદ્ગુરુ એ છે જે વ્યાપ્ત હોય, આપણને એ નામથી બોલાવતા હોય, પણ એને આપણે પામી શકતા નથી. આપણને એમ જ થાય કે એ આપણા જેવા જ છે, આપણી જેમ ખાય, બોલે. એનું હોવું બહુ જ મોટી અસર ઉપજાવે. પરંતુ વળી પાછું આપણને ક્યારેક ક્યારેક થાય કે આ બુદ્ધપુરુષ હશે? આને તુલસી જગદ્દગુરુ કહે છે. રામ જગદ્દગુરુ છે.
  • આ ગુરુ પરંપરામાં જે કુલગુરુ છે એને લોકો પૂજે. 
  • ત્રીજો ધર્મગુરુ. એનાથી લોકો ડરે. તથાકથિતમાં એવું દેખાય જ છે! 
  • સદ્દગુરુ એવો હોય કે પોતે દુ:ખી થાય, પણ એ કોઇને દુ:ખી ન કરે. અને બગીચામાં જ રહે પણ એકેય પાંદડું તોડે નહીં. ફૂલને મૂરઝાવા ન દે. આપણી વચ્ચે જ રહે. પણ આપણું શોષણ ન કરે. 
  • તથાકથિત ધર્મગુરુઓથી જગત ડરે છે. કુલગુરુને લોકો પૂજે છે. જગદ્દગુરુ વ્યાપ્ત છે.
  • એવો ગુરુ કે જેને પૂજાવું નથી. એને લોકો પ્રેમ કરે, એનું નામ છે સદ્દગુરુ. સદ્દગુરુની લોકો પૂજા નથી કરતા, એને પ્રેમ કરે છે. 

એક એવુ ઘર મળે આ વિશ્વમાં,
જ્યાં કશા કારણ વગર પણ જઇ શકું.


  • જે વસ્તુ આપણા કારણ વગરના મોહનો ક્ષય કરે તે મોક્ષ. અહીં પ્રેમ, નીતિ, પ્રામાણિકતા, આનંદથી જીવી લેવું, આનાથી બીજો મોક્ષ કયો, સાહેબ! મોક્ષની વાતો કરતા હોય તેના મોઢા પર કડકાઇ હોય છે! પહેલાં તારી આ કડકાઇને તો મોક્ષ આપ! આ પૃથ્વી બહુ જીવવા જેવી છે. અને જે રીતે વિજ્ઞાને સુવિધા કરી છે. મને તો એમ થાય કે બહુ જીવવું છે. મારા ભાગનો મોક્ષ તમને દક્ષિણામાં, તમે વહેંચીને ખાજો! મને તો એવું લાગે છે કે આપણે જે નવ દિવસ આનંદ કર્યો ને ભજન અને ભોજનની જે ઝપટ બોલી છે, આ સ્વર્ગ છે. બીજું શું મોક્ષ? 
  • મારો ભરત મુક્તિ નથી માગતો-


અરથ ન ધરમ ન કામ રુચિ
ગતિ ન ચહઉં નિરબાન.
જનમ જનમ રતિ રામપદ
યહ બરદાનુ ન આન.
અને મારા નરસિંહ મહેતા સુધી જતાં રહીએ તો...
હરિના જન તો મુક્તિ ન માગે,
માગે જનમ જનમ અવતાર રે,
નિત સેવા નિત કીર્તન ઓચ્છવ,
નિરખવા નંદકુમાર રે,


  • ‘ગીતા’ કહે, કર્મ વિના માણસ જીવી શકતો નથી. અને ત્યાં કથા નથી એ ચોક્કસ! ત્યાં કદાચ હરિ હોય તો પણ હરિકથા નથી! 

(સંકલન: નીતિન વડગામા)

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